कई मित्रों ने सती पर और जानकारी माँगी। सती के विषय के बहुत बहुत कुछ पहले से उपलब्ध है। फिर भी कुछ जानकारी और समझें। सबसे पहले कुछ कॉन्सेप्ट समझने चाहिए।
-केसरिया- जब किसी राज्य पर आक्रमण होता और अपनी क्षत्राणियों को जौहर करने का निश्चय होता तो पुरुष सर पर केसरिया पगड़ी पहन युद्धभूमि में जाते- मरने मारने।
-जौहर- अपने सतीत्व की रक्षा हेतु यदि स्त्री अग्निस्नान करती तो उसे जौहर कहते थे। सामूहिक रूप से यह अग्निस्नान स्त्रियाँ करती थी।
-केसरिया और जौहर को सामूहिक रूप से साका कहा जाता है।
– सती का अर्थ है पति के शव के साथ अंत्येष्टि में यदि पत्नी स्वेच्छा से बैठ अग्निसात कर ले तो उसे सती कहते है। सती शब्द की कदाचित् उत्पत्ति माँ सती से जुड़ी है जिन्होंने प्रभु शिवशंभु के अपमान पर अपने पिता की यज्ञ वेदी में अग्नि को वरण किया था।
हालाँकि यहाँ माँ सती ने आत्मदाह तब किया जब उनके पति का अपमान हुआ – ये बात बाक़ी सती के कॉन्सेप्ट से भिन्न है। सती का उल्लेख रामायण में मिलता है जब मेघनाद पत्नी सुलोचना अपने पति संग सती होती है। रावण वध के बाद मंदोदरी का सती होना कही नहीं मिलता हालाँकि रामायण के अनेक स्वरूप मंदोदरी का विवाह विभीषण से होना बताते है।
राजा दशरथ की मृत्यु उपरांत भी तीनों रानियो में से कोई सती नहीं होती। महाभारत में पांडु की मृत्यु के बाद माद्रि का सती होना उल्लिखित है – माद्रि का सती होना कदाचित् इसलिए बताया गया है क्योंकि उनके चलते ही महाराजा पांडु ने अपना ब्रह्मचर्य नियम भंग किया और मृत्यु को प्राप्त हुए। प्रभु कृष्ण के अपने लोकगमन के बाद आठ पटरानियो ने सती होना स्वीकृत किया। तो एक बात क्लियर है- अब तक सती कोई प्रथा नहीं थी-एक वोलंटरी प्रोसेस थी जो कोई विधवा अपनी इच्छा से चुन सकती थी।
सती को लेके वेद और शेष पौराणिक ग्रंथों में अनेक सूत्र है। मसलन- सती होने वाली स्त्री अपने मृत पति के सब पाप धो सकती है। बृहस्पति स्मृति के अनुसार सती पूर्ण रूप से स्वच्छिक है- “स्त्री इच्छा” पर सब छोड़ा हुआ है। अब सती के संदर्भ में कुछ विदेशी यात्रियो के रोजनामचो की तरफ़ मुड़ते है।
चौथी शताब्दी के ग्रीक यात्री लोग सती के बारे में लिखते है कि ये कुछ सहस्र वर्षों पूर्व होती थी। फिर आठवीं शताब्दी तक अनेक उल्लेख है जहां दक्षिणी राजाओं की मृत्यु उपरांत उनकी रानी उनके साथ सती हो रही थी। केवल रजवाड़ों में ये परंपरा बताई गई अब तक। अल बेरूनी और इब्नबतूता ने भी सती पर लिखा है। बतूता ने जब पहली बार सती अपने सामने होते देखी तो वो अपने घोड़े से ख़ौफ़ के मारे गिर पड़ा।
दिल्ली सल्तनत के शुरू होने के बाद सुल्तानों और बादशाहों ने नियम बनाया कि सती लोकल जगह के सूबेदार की इजाज़त से ही होगी। पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया। मध्यकाल में सती का उल्लेख उच्चकुल में बताया गया है। कुछ यात्रियों ने सती के बारे में जो देखा लिखा उनकी एक झलक देखिए-
१-एक इंट्रेस्टिंग क़िस्सा जो वर्नीअर ने लिखा है वो कुछ यूँ है। एक स्त्री का चक्कर अपनी मजहबि पड़ोसी से था जो पेशे से एक दर्ज़ी था और खँजरी बजाता था। स्त्री ने अपनी पति को विष देकर इस उम्मीद में मार दिया कि ये दर्ज़ी उसे अपना लेगा। लेकिन जब दर्ज़ी ने इनकार कर दिया तो स्त्री ने अपने ससुराल पक्ष के लोगों के सामने सती होने की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने स्वीकृति दे दीं। सती होने के समय संगीत वादकों को चिता के पास संगीत बजाने के लिए बुलाया गया – उनमें ये दर्ज़ी भी खँजरी बजा रहा था। जब चिता में अग्नि पूर्ण रूप से प्रज्ज्वलित हो गयी तो उस स्त्री ने उस दर्ज़ी को पकड़ कर चिता में खींच लिया और दोनो भस्म हो गए।
२-टवर्नीर ने सती का एक और क़िस्सा लिखा है। शाहजहाँ काल में वो पटना के सूबेदार के साथ था जब एक बाईस साल की युवती उस से अपने पति के शव के साथ सती होने की अनुमति माँगने आयी। सूबेदार ने उसकी आयु और सुंदरता देख कर उसको लाख समझाया और पूछा क्या उसी युवती को अग्नि से भय लगता है। युवती ने इनकार किया और कहा यदि शंका हो तो मशाल मँगवा लो। कुछ सिपहसलार /अमीर /नोबल लोगों ने युवती का टेस्ट लेने की ठानी और मशाल मंगाई। युवती ने बिना उफ़्फ़ किए, बिना कोई दर्द के अपना हाथ- कोहनी तक मशाल की आग में डाल दिया और उसका हाथ तुरंत जल गया। सूबेदार ने तुरंत उसे वहाँ से ले जाने का आदेश दिया।
३-बर्नियर आदि विदेशी यात्रियों ने मध्यकालीन भारत में सती और जौहर के अनेक वृतांत बतायें है। सती को ये लोग बड़े अचरज से लिखते है- कुछ सती के क़िस्से ज़ोर ज़बरज़स्ती वाले भी लिखें है। किंतु बर्नियर ने एक कहानी ऐसी लिखी है जिस में वो अपनी श्रद्धा और सम्मान भारतीय क्षत्राणी के प्रति बयान करता है। बर्नियर दारा और औरंगज़ेब के युद्ध का वर्णन लिखते बताता है- शाहजहाँ और दारा के ओर से युद्ध करने गये महाराजा जसवंत सिंह को औरंगज़ेब की फ़ौज से काफ़ी जनमाल आदि की हानि हुई। इसके चलते महाराज अपनी शेष सेना को ले वापस अपने क़िले में लौटने लगे। ये देख महारानी ने क़िले के दरवाज़े बंद करवा दिए और महाराजा को अंदर आने से रोक दिया। राणा वंश की महारानी के अनुसार कोई भी महाराणा का दामाद युद्ध से ऐसे पलायन कर वापस नहीं आएगा। महारानी ने अग्निस्नान की पूर्ण तैयारी की और महाराजा को अपने निकट नहीं आने दिया। महारानी को समझाने उनकी माँ भी आयी किंतु महारानी टस से मस नहीं हुई। बर्नियर इस मौक़े पर मौजूद था और वो अपनी किताब में लिखता है- इस देश की नारी की आत्मा की थाह लेना अत्यंत कठिन कार्य है। यें ना केवल जौहर और सती कर सकती है बल्कि अपने वंश के सम्मान , अपनी प्राचीन परंपराओं के सम्मान के लिए ऐसी अडिग भी हो सकती है।
४-टवर्नीर ने सती का एक क़िस्सा अपनी पुस्तक में लिखा है। वेल्लोर के राम राजा को जब बीजापुर बीदर गोलकुंडा और अहमदनगर की संजुक्त फ़ौज ने तालिकोटा के युद्ध में हरा कर हत्या कर दी तो उनके कुल की ग्यारह स्त्रीयों ने उनके अग्नि संस्कार के साथ सती होने का निश्चय किया। बीजापुर के सिपहसलार ने लाख प्रलोभन दिए किंतु ये स्त्रीया। नहीं मानी । उसने इन लेडीज़ को एक कमरे में बंद करवा दिया। इन्होंने चेतावनी दी – तीन घंटो में वो जीवित नहीं रहेंगी। इस चेतावनी की खिल्ली उड़ते हुए उन्हें कमरे में बंद कर दिया गया। तीन घंटे बाद जब कमरा खोला गया तो सब लेडीज़ मृत भूमि पर पड़ी थी। पता नहीं चला इनकी मृत्यु कैसे हुई।
५-बेर्नीर ने शाहजहाँ काल में सती विषय पर लिखा है- कई यात्रीयो ने जो सती के वृतांत लिखे है वो काफ़ी हद तक बढ़ा चढ़ा कर लिखे गए है। सती होने वाली स्त्री के आँकड़े हक़ीक़त में कम है। भारत में चूँकि राज्य मोमिनो का है- वो इस प्रैक्टिस को होने नहीं देते है। किसी रियासत या सूबे में जहां मोमिन राज्य है- किसी स्त्री को सती होने की इजाज़त नहीं है जब तक सूबेदार या गवर्नर इजाज़त ना दे दें। सूबेदार पूरी कोशिश करता है कि सती होने वाली स्त्री उसके दिए लुभावने वादों में आ जा जावे। कई बार ये गवर्नर ऐसी स्त्रीयो को अपने हरम में भी भेज देता है। ऐसी रियासत जहां किसी राजा का राज्य है- किसी मजहबि गवर्नर का राज्य नहीं है- वहाँ सती होने के केस ज़्यादा है । वर्नीअर ने कुछ क़िस्से ऐसे भी बताए है जिस में उसने स्वयं सती होने वाली स्त्री को रोका और वो अपने बच्चों की ख़ातिर मान भी गयी। ये तीन तिलंगे- टवर्नीर बेर्नीर और मनुची युरप के थे और जिस कालखंड में थे- युरप में विच हंटिंग के नाम पर स्त्रीयो को जलाने की प्रथा बहुत आम थी। भारत भ्रमण में इन तीनो ने सती प्रथा को देखा और तीनो ने कुछ क़िस्से लिखे भी है। सोचने वाली बात ये है जो लोग अपने देश में विच हंटिंग के नाम पर स्त्रीयो को जबरजसती जीवित जलता देख कर आए हो वो भारत में सती देख कर क्यूँ शॉक में आएँगे। उत्तर है- इन तीनो ने जो उदाहरण देखे और लिखे उनमें एक पैटर्न और बात बहुत साफ़ है- सती होने वाली अनेक स्त्रीया स्वयं insist कर रही थी- मनुची और वर्नीअर ने दो लेडीज़ को रोका उन्हें उनके छोटे बच्चों का वास्ता दिया और वो दो लेडीज़ सती नहीं हुई।
मध्यक़ालीन भारत में एक स्त्री को बचपन से पति के प्रति प्रेम और निष्ठा संस्कार में मिलते थे- ये सिखाया जाता था पति के बिना संसार और जीवन व्यर्थ है। कदाचित ये एक मुख्य कारण रहा होगा सती के प्रति कई विधवा स्त्रीयों के जुड़ाव का। अब ब्रिटिश काल में बंगाल का एक ब्रिटिश अफ़सर जॉन हॉलवेल ने सती के कुछ उदाहरण लिखे है। मसलन एक सत्रह वर्ष की विधवा सती होने चली – लेडी रसेल के लाख मना करने पर भी उसने चिता में प्रवेश किया। ऐसे कुछ और उदाहरण उसने लिखे है। कुछ केस में ज़बरज़स्ती कर स्त्रियों को सती करवाया जा रहा था। इस अंग्रेज ने कुछ बातें बड़ी दिलचस्प लिखी है- ये लिखता है पति की मृत्यु के चौबीस घंटे का समय विधवा को दिया जाता है ताकि वो अपना फ़ैसला ख़ुद करें सती होने का। अनेक जगह ब्रिटिश अफ़सर इन मुआमलों में आगे आते है- विधवा को समझाना, उसे पानी पिला कर इस मार्ग से अलग करना आदि। स्वाभाविक है किसी नई विधवा को समझाना और समय देने से उसका मन बदलता होगा। अनेक केस में ज़ोर ज़बरज़स्ती का भी उल्लेख है।
फिर इस में बंगाल में बाल विधवा और वेश्यावृत्ति के भी कुछ कोण है। बड़े राजा महाराजा के साथ उनकी रानियाँ सती होती थी- ये बाक़ायदा डॉक्युमंटेड है। मसलन महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु उपरांत उनकी अनेक रानियाँ सती हुई।
पोस्ट सुरसा के मुख जैसी बड़ी हो रही है।प्रामाणिक तौर ये कहना मुफ़ीद होगा कि सती प्रथा कोई ऐसी प्रथा ना थी जो हर हिन्दू विधवा को माननी पड़ती थी। इच्छा पर आधारित इस रिवाज को मध्यकाल में कदाचित् ट्विस्ट दिया गया- जबरन अनेक लेडीज को इसका शिकार बनना पड़ा। हालाँकि सती के आँकड़े आदि देखने में काफ़ी कुछ इंगित करते है।
जो भी हो सती की ये रस्म समय के साथ बंद हुई- वो हमारे समाज के एवॉल्वमेंट को दर्शाता है!

लेखक अमेरिका निवासी भारतीय मूल के एक इतिहास के अध्येता है। भारतीय इतिहास में ख़ास रुचि रखने वाले मन जी पंद्रह वर्ष से विदेश में रहते है और भारतीय जड़ों से जुड़े हुए है।