पर्यावरण और डेवलपमेंट

जमशेदपुर में शहर के बीचोबीच एक बहुत बड़ा जुबिली पार्क है. उसके अलावा पूरे शहर में हर तरफ पेड़ ही पेड़ हैं, सड़कों के किनारे या किसी भी खाली जमीन पर…बहुत सारे पेड़ हैं. कुल मिलाकर रिलेटिवली काफी हरा भरा शहर है.

पर ऐसे पार्क क्या अररिया, खगड़िया, कटिहार टाइप शहरों में भी हैं? यह जुबिली पार्क जमशेदपुर में क्यों है?

क्योंकि वहां टाटा की फैक्ट्रीज हैं. अगर ऐसी फैक्ट्रीज दूसरे शहरों में भी होती तो वहां भी पार्क होते, पेड़ होते. उनके पास संसाधन होते जिससे वे अपने वातावरण को, पर्यावरण को साफ सुथरा रख सकते. इंडस्ट्रीज संसाधनों का दोहन नहीं करतीं, संसाधनों का एफिशिएंट उपयोग करती हैं. वे नए संसाधन क्रिएट करती हैं, पर्यावरण से लोड कम करती हैं. उतने ही साधन पहले से कई गुना लोगों का जीवन सस्टेन करते हैं.

स्कूलों में माल्थस का सिद्धांत आज भी पढ़ाया जाता है जिसमें यह वार्निंग दी जाती है कि दुनिया की पॉपुलेशन जिस गति से बढ़ती है, उस गति से संसाधन और उत्पादन नहीं बढ़ सकते. लेकिन सवा दो सौ साल पहले 1798 में जब माल्थस ने पॉपुलेशन थ्योरी पर अपनी पुस्तक प्रकाशित की थी तब से आजतक दुनिया की पॉपुलेशन आठ गुना बढ़ी है. और आज हर पैरामीटर पर हमारे पास प्रति व्यक्ति पहले से कई गुना अधिक संसाधन उपलब्ध हैं.

क्योंकि मनुष्य का वास्तविक संसाधन नॉलेज है. और नॉलेज के विकास की कोई सीमा नहीं है. मानवता के इतिहास में पहली बार हमारे पास आवश्यकता से अधिक भोजन उपलब्ध है. प्राकृतिक आपदाओं से जितने लोग दो सौ साल पहले मरा करते थे, आज उसके मुकाबले 1% से भी कम लोग मरते हैं. क्योंकि टेक्नोलॉजी के कारण हम बाढ़ या तूफान को प्रेडिक्ट कर सकते हैं. टेक्नोलॉजी के कारण आपदा प्रबंधन की हमारी क्षमता में कई गुना वृद्धि हुई है. पर्यावरण में हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं, पर आज हम उन परिवर्तनों के अनुसार रेस्पोंड करने में सक्षम हैं.

पर्यावरण को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनमें कितना अंतर आ रहा है…वह हर हालत में पर्यावरण है. उसमें मनुष्य जीवित नहीं रहेगा तो अन्य कोई प्राणी जीवित रहेंगे. पर बदलते हुए पर्यावरण में हमारे जीवित रहने की क्षमता टेक्नोलॉजी पर निर्भर है, इंडस्ट्री पर निर्भर है.

डॉ राजीव मिश्रा यूँ तो पेशे से चिकित्सक हैं पर शौकिया लेखन से किशोरावस्था से ही जुड़े हैं. इन्होंने भारतीय सेना की मेडिकल कोर में भी सेवाएँ दी हैं और मेजर के पद से सेवानिवृत हुए. साथ ही जमशेदपुर में अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े रहे. उन्होंने चिकित्सा के अलावा साहित्य, राजनीति और इतिहास के अध्ययन में अपनी रुचि बनाई रखी और सोशल मीडिया के आगमन ने उनकी सृजनात्मकता को नई दिशा दी. अपनी विचार यात्रा में उन्होंने वामपंथ से शुरुआत करके गाँधीवाद और फिर राष्ट्रवाद तक की दूरी तय की है, और सोशल मीडिया में राष्ट्रवादी लेखकों के बीच एक परिचित नाम हैं. “विषैला वामपंथ” लेखक की पहली प्रकाशित कृति है. वर्तमान में लेखक यू.के में नेशनल हेल्थ सर्विसेज में चिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं.

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