अमेरिकी समाज और स्वतंत्रता: 1

वैसे तो मैने अपने जीवन का एक चौथाई से अधिक पश्चिम में रहकर काटा है, लंदन में सात साल रहा हूं, और यूरोप के ज्यादातर प्रमुख शहर देख चुका हूं…लेकिन न्यूयॉर्क मुझे इतना ओवरव्हेलमिंग लगेगा यह अपेक्षा नहीं थी. यहां आकर स्काईस्क्रैपर शब्द का भाव समझ में आया.

मैनहट्टन में इमारतें कितनी ऊंची हैं यह फीट और मीटर में मापने और मंजिलें गिनने की बात नहीं है. यह एक फीलिंग है जो उन इमारतों के बीच खड़े होकर समझ में आती है. आप इस शहर को सामने से नहीं देखते…गर्दन मोच आ जाए इस हद तक गर्दन को मोड़ कर ऊपर देखते हैं. और शहरों में लैंडमार्क होते हैं, मैनहट्टन में स्काईमार्क्स हैं. यहां रास्ता भूलना आसान नहीं है क्योंकि आपको कहां और किधर जाना है यह आकाश में दिखाई देता है.

मैनहट्टन जमीन का एक बहुत ही छोटा सा टुकड़ा है. मैं श्योर हूं, मेरी लिस्ट में ऐसे लोग होंगे जिनके दादा परदादा के पास उससे ज्यादा क्षेत्रफल में खेत होंगे. लेकिन उतनी जमीन पर जितनी सम्पदा खड़ी है, उतने में दुनिया के कई देश तीन बार खरीद कर बेच दिए जा सकते होंगे. मैनहट्टन को देखकर यह समझ में आता है कि मनुष्य अपने परिश्रम से, उद्यम से, कल्पना से क्या कर सकता है. आप जब एंपायर स्टेट बिल्डिंग की छत से नीचे देखते हैं तो यह सोचना आसान नहीं होता है कि इतना सबकुछ जो इस धरती के इस छोटे से टुकड़े पर बना हुआ है वह सब इसी धरती से निकला है. और फिर आप यह सोचते हैं कि इनमें से अधिकांश एक सदी पहले यहां नहीं हुआ करता था. जिस समय यूरोप में देश एक दूसरे का खून बहा रहे थे, एक दूसरे से अमानवीय कृत्य कर रहे थे…एशिया में देश दासता में बंधे थे और यह सोचना एक सामाजिक उपलब्धि थी कि स्वतंत्रता जीवन की आवश्यक शर्त है… तो अमेरिका यह सब क्रिएट कर रहा था.

पेरिस में एफिल टॉवर जब 1890 में बना तब उसके पहले धरती पर सबसे ऊंची मानव निर्मित चीज थी गीजा का पिरामिड, जो तीन हजार साल पहले बना था. यानि तीन हजार वर्षों में धरा पर निर्माण की मानव क्षमता का कोई विकास नहीं हुआ बल्कि ह्रास ही हुआ था. वह कौन सी विचारधाराएं हैं जिन्होंने पिछले दो सहस्त्राब्दियों में मानव सभ्यता के विकास को न सिर्फ बाधित किया बल्कि पीछे ले गए, यह सोचने विचारने का काम आप पर छोड़ता हूं. लेकिन अमेरिका ने दो सदियों में मानव सभ्यता के दो हजार वर्षों के गतिरोध की न सिर्फ भरपाई कर दी, बल्कि उसे लेकर अंतरिक्ष में चले गए. जो बातें कल्पना की सीमाओं से परे थी वहां वास्तविकता की उड़ान भरी.

और यह संभव हुआ सिर्फ एक शब्द से… स्वतंत्रता… लिबर्टी…यह विचार अमेरिकी मानस में बहुत बहुत गहरे रचा बसा है. और समाजवाद, वोकिज्म, नस्लवाद और तमाम तरह के दूसरे सामूहिक पागलपनों के बावजूद यह विचार somehow, आज भी इस समाज में जीवित है और यह अमेरिकी समाज को जीवित और स्पंदित किए हुए है.. (क्रमशः)

डॉ राजीव मिश्रा यूँ तो पेशे से चिकित्सक हैं पर शौकिया लेखन से किशोरावस्था से ही जुड़े हैं. इन्होंने भारतीय सेना की मेडिकल कोर में भी सेवाएँ दी हैं और मेजर के पद से सेवानिवृत हुए. साथ ही जमशेदपुर में अनेक समाजसेवी संस्थाओं से जुड़े रहे. उन्होंने चिकित्सा के अलावा साहित्य, राजनीति और इतिहास के अध्ययन में अपनी रुचि बनाई रखी और सोशल मीडिया के आगमन ने उनकी सृजनात्मकता को नई दिशा दी. अपनी विचार यात्रा में उन्होंने वामपंथ से शुरुआत करके गाँधीवाद और फिर राष्ट्रवाद तक की दूरी तय की है, और सोशल मीडिया में राष्ट्रवादी लेखकों के बीच एक परिचित नाम हैं. “विषैला वामपंथ” लेखक की पहली प्रकाशित कृति है. वर्तमान में लेखक यू.के में नेशनल हेल्थ सर्विसेज में चिकित्सक के रूप में कार्यरत हैं.


Leave a comment